ये तस्वीर है टीकमगढ़ के शासकीय प्राथमिक शाळा मढ़खेरा की ...इस स्कूल के 80फ़ीसदी बच्चे मध्यान्ह भोजन का खाना सिर्फ इसीलिए नहीं खाते क्योंकि ये भोजन एक दलित बनाता है वो भी अपने घर पर ...सवाल ये उठता है की प्राइमरी स्कूल के बच्चों की औसत उम्र 6 से 11 साल होती है ऐसे में इन बच्चों को जात पात के भेदभाव की बात कौन सीखाता है या फिर चूँकि सरकारी व्यवस्थाये ही कमजोर है और पालको को इस बात का डर हो की स्कूल की बजाय घर में खाना बनाये जाने से खाने की गुणवत्ता पर प्रश्न लगता हो और ये प्रश्न लाजिमी भी है बच्चों का भी और उनके माता पिता का भी...और इससे स्कूल के हेडमास्टर भी इत्तफाक रखते है सवाल ये है की क्यों सरकार इस स्कूल में ही खाना बनाने की व्यवस्था नहीं करती ...एक तरफ एम् पी सरकार "मिले बांचे मध्य प्रदेश " कार्यक्रम आयोजित कर रही है जिसमे मंत्रीयो से लेकर सारे जनप्रतिनिधि और ब्यूरोक्रेट्स स्कूलो में नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने जाने वाले है ऐसे में क्या शिक्षा मंत्री को इस स्कूल में जाकर एक नजीर नहीं पेश करनी चाहिए...मंत्री गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह भी सवर्ण है और बुंदेलखंड से ही आते है ऐसे में वो भी जाकर अगर वहा मध्यान्ह भोजन करेंगे तो शायद बुंदेलखंड के इस ग्रामीण स्कूल के पालको और बच्चों की सोच बदले ...बच्चों को बांचने के पहले ये हालात ये साफ़ बताते है की थोड़ा सरकार को भी खुद को बांचने की जरुरत तो है....
Sunday, January 29, 2017
साहब इस स्कूल में जाकर पढ़ाइये नैतिक शिक्षा का पाठ
ये तस्वीर है टीकमगढ़ के शासकीय प्राथमिक शाळा मढ़खेरा की ...इस स्कूल के 80फ़ीसदी बच्चे मध्यान्ह भोजन का खाना सिर्फ इसीलिए नहीं खाते क्योंकि ये भोजन एक दलित बनाता है वो भी अपने घर पर ...सवाल ये उठता है की प्राइमरी स्कूल के बच्चों की औसत उम्र 6 से 11 साल होती है ऐसे में इन बच्चों को जात पात के भेदभाव की बात कौन सीखाता है या फिर चूँकि सरकारी व्यवस्थाये ही कमजोर है और पालको को इस बात का डर हो की स्कूल की बजाय घर में खाना बनाये जाने से खाने की गुणवत्ता पर प्रश्न लगता हो और ये प्रश्न लाजिमी भी है बच्चों का भी और उनके माता पिता का भी...और इससे स्कूल के हेडमास्टर भी इत्तफाक रखते है सवाल ये है की क्यों सरकार इस स्कूल में ही खाना बनाने की व्यवस्था नहीं करती ...एक तरफ एम् पी सरकार "मिले बांचे मध्य प्रदेश " कार्यक्रम आयोजित कर रही है जिसमे मंत्रीयो से लेकर सारे जनप्रतिनिधि और ब्यूरोक्रेट्स स्कूलो में नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने जाने वाले है ऐसे में क्या शिक्षा मंत्री को इस स्कूल में जाकर एक नजीर नहीं पेश करनी चाहिए...मंत्री गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह भी सवर्ण है और बुंदेलखंड से ही आते है ऐसे में वो भी जाकर अगर वहा मध्यान्ह भोजन करेंगे तो शायद बुंदेलखंड के इस ग्रामीण स्कूल के पालको और बच्चों की सोच बदले ...बच्चों को बांचने के पहले ये हालात ये साफ़ बताते है की थोड़ा सरकार को भी खुद को बांचने की जरुरत तो है....
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