Sunday, February 5, 2017

हर चुनाव एक ही कयास ,,"शिव-राज" को वनवास ! एम पी के चार दिग्गज पत्रकारो की राय मे जानें कयास का सच ....

   देश मे चुनाव कहीँ भी हो लेकिन पिछले कुछ सालो से  उन चुनावो को एम पी मे सत्ता  परिवर्तन से जोडकर कयास लगाने का एक चलन बन गया है ...व्यापम मामले के ठीक बाद तो ऐसा महौल बनाय गया की बिहार की जनता सिर्फ बिहार का ही नही एम पी का भी सी एम तय करेगी ...फिलहाल देश मे चार राज्यो मे चुनाव चल रहे है और एम पी मे कयास....... प्रदेश की राजनीती मे रिकार्ड समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराज सिंह चौहान  को लेकर हर चुनाव के वक्त एक ही अटकल लगायी जाती है की बस चुनाव के बाद विदाई तय है ...इस दफा भी यही अफवाह है की यू पी चुनाव बी जे पी जीती तो सी एम पद से शिवराज सिंह चौहान की विदाई तय है लेकिन  सवाल ये है की क्या इसमे कुछ  हकीकत भी होती है या फिर ये अफवाह जानबुझकर फैलायी जाती है....कोशिश करते है इसे हकीकत को  जानने की ...
       सी एम शिवराज ने जब सी एम पद की शपथ पहली बार ली थी तभी यह कहा गया की शिवराज " टेम्परेरी सी एम" है लेकिन जिन्हे  " टेम्परेरी सी एम" कहा गया उन्ही के  नाम इस समय है एम पी मे सबसे लम्बे समय तक सी एम बने रहने का रिकार्ड ...कहा गया था उमाजी वापिस आयेंगी लेकिन आज देखे तो उमा भारती एम पी से गुम है और एम पी मे "शिवराज का ही राज" है ...इस बीच मे कभी व्यापम की आंधी  आयी  तो कभी मोदी से विवादो का तुफान  भी ..लेकिन कभी किस्मत ने उनका साथ दिया तो कभी उन्होने खुद को प्रूव किया ........लेकिन कयास अब भी जारी है सी एम शिवराज की विदाई के ....मध्य प्रदेश के चार ऐसे विश्लेषक पत्रकारो से   जानते है हम इस कयास की हकीकत जिन्होने ऐसे ही कयास  दिग्विजय सिह  के वक्त भी सुने थे  और तब परिवर्तन भी हुआ था लेकिन वो परिवर्तन जनता लायी थी ना की उन्ही की पार्टी ...... अब एक बार फिर कहा जा रहा है की आरक्षण ..सरकारी कर्मचारी और आपकी अपनी ही पार्टी के लोग आप के विरोधी हो गये है  एक समानता और है दिग्ग्विजय सिंह भी एक वक्त पी एम पद के दावेदार माने जाने लगे थे और अब शिवराज सिह चौहान भी उसी कद पर है  ऐसे मे क्या संभावनाये बनती है ये जानते है  पिछले तीन दशक से एम पी की राजनीती के बदलते परिदृश्य देखने वाले  चार जाने माने  पत्रकारो से ....
शिव अनुराग पटेरिया  -(सम्पादक -लोकमत समाचार)
कोई भी सी एम है वो अगर एक लम्बे समय तक   सत्त्ता  मे रहता है तो उसका विरोध शुरु हो जाता है उसकी अपनी पार्टी के लोग भी डरते है की वो अतिशक्तिशाली न हो जाये और कुछ हद तक जनता मे एक आक्रोश अपने आप उभरता है ,दिग्ग्विजय सिंह के समय भी यही परिस्थितियाँ थी ......यही कारण है की ऐसी बाते अब सी एम शिवराज के सामने आ रही  है .....

   
दीपक तिवारी -( विशेष संवादाता "द वीक ")
by twitter wall
जो लोग पावर मे होते है वो  हमेशा स्टेटस को चाहते  है  और जो इस स्टेटस को एंजाय करते है वो इस तरह के कयासो को खारिज करते है लेकिन जो एंजाय नही कर पाते भले ही वो सत्तधारी पार्टी के लोग हो या विरोधी पार्टी के वो ऐसी बातो को हमेशा हवा देते रहते है ....आज के समय मे आपकी चुनाव जीताने की क्षमता ही आप पर पार्टी का विश्वास होती है और शिवराज इस कसौटी पर अब तक खरे उतरे है ऐसे मे अभी पार्टी या  संघ उन्हे हटाने की कोशिश करे इसकी संभावना कम दिखती है....


जगदीश दिवेदी -(पोलिटिकल एडिटर -प्रदेश टुडे )
मध्य् प्रदेश मे भाजपा  के पास शिवराज का कोई विकल्प नही है ना ही पार्टी के पास कोई सेकेंड लाईन हैजगदीशजी की राय मे  शिवराज को अभी भी पुरे प्रदेश मे विकास पुरुष के रूप मे जनता का वरदहस्त प्राप्त है ..उनकी सी एम पद से विदाई की कोई संभवाना नही है ये सब मीडीया का बाजार गर्म करने वाली बाते है ....




ब्रजेश राजपुत -(विशेष संवादाता -ए बी पी न्युज  )
 ब्रजेश राजपूत भी  बेहद साफ शब्दो मे कहते है की मध्य प्रदेश मे बी जे पी के मायने बदल गये है यहाँ पार्टी संगठन से ज्यादा शिवराज के भरोसे है ...रही बात केंद्रीय नेतृत्व से शिवराज के  सम्बंधो की तो पिछले दो सालो मे परिस्थितियाँ बदली है और मोदी और शिवराज के बीच अंडरस्टेंडिंग काफी बढी है यही कारण है की मोदी ने कई कमेटियो की कमान भी शिवराज को सौंपी है ........
                       प्रदेश की राजनीती को बेहद करीब से देखने वाले इन पत्रकारो की राय से एक बात साफ झलकती है की फिलहाल शिवराज को किसी से भी कोई खतरा नही है..ना पार्टी से ना ही केंद्रीय नेतृत्व से और कुछ हद तक जनता से भी नहीँ ..किसी समय पार्टी मे ही उनके विकल्प के रुप मे देखे जाने वाले प्रभात झा ,कैलाश विजयवर्गीय  और उमा भारती भी शायद ये बात बेहतर समझ गये है इसिलिये इन सभी नेताओ के खुद को केंद्र तक सीमीत कर लिया है रही बात कांग्रेस की या विरोधी पार्टियो की तो पिछ्ले कुछ उपचुनावो के परिणाम यही कहते नजर आ रहे है की सत्ता मे आने के लिये विपक्षियो को अभी कडी मेहनत की जरुरत है हालंकि लोकतंत्र मे कुर्सी जनता सौंपती  है इसिलिये 2018 के चुनाव तक इन कयासो को कयास ही माना जा सकता है इससे ज्यादा कुछ नही ............ अनुराग मालवीय 

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