Friday, January 13, 2017

एम् पी में जारी है "तोते की गर्दन पकड़ने का खेल"यहां तारीफे दिल से नहीं मज़बूरी में होती है

ज़रा गौर कीजिये नन्द कुमार सिंह चौहान के इस बयान पर"शिवराज ही पार्टी के झंडे है..उनका नाम उनसे भी बड़ा है" कार्यकर्त्ताओ से चलने वाली कैडर बेस पार्टी के पहले प्रदेश अध्यक्ष है नंदकुमार सिंह चौहान जो व्यक्तिगत तारीफ़ करते वक्त पार्टी की रीती नीति भूल जाते है...ऐसा उनके पहले रहे किसी भी प्रदेश अध्यक्ष ने नहीं किया ...क्या ये तारीफ़ वो दिल से करते है या मजबूरी में...जब नंदकुमार सिंह चौहान प्रदेश अध्यक्ष बनकर भोपाल आये थे तब तो ऐसा नहीं था आते ही उन्होंने स्टेशन पर जो कहा था वो सभी को याद होगा फिर अचानक उनके ह्रदय परिवर्तन के क्या कारण है..सिर्फ वो ही नहीं इस कड़ी में कई और नाम है संजय पाठक और राकेश सिंह का कांग्रेस छोड़ना और जिनने बात नहीं मानी उनका हश्र राघवजी जैसा होना ...हालांकि जयंत मलैय्या जैसे कुछ नाम ऐसे भी है जिन्हें भी मुश्किल में डालने की कोशिश की गयी पर वो निकल गए ...पर कहते है जो जैसा करता है वैसा ही भरता है "व्यापम की सी बी आई जांच के बाद सी एम् के मुँह से निकलने वाली पी एम् मोदी की तारीफ़ भी कहीँ यही कहानी नहीं दोहरा रही "चलिए जान लेते है एम पी में आखिर क्या चल रहा है..और क्या मीडिया का चौथा स्तम्भ इससे अछुता है......
केस 1-राघवजी का नाम याद आते ही हर कोई मुस्कुरा जरूर देता है लेकिन एक वक्त वो भी था की राघवजी का डर संगठन और सत्ता दोनों जगह था...सरकारी कर्मचारियों के वेतन को लेकर तत्कालीन  वित्त मंत्री और सी एम् के बीच दूरियां काफी बढ़ गयी है और 2013 के चुनाव के ठीक पहले जुलाई 2013 में राघवजी सी डी काण्ड हो गया|
केस 2-संजय पाठक के पास ना दौलत की कमी थी और ना ही कांग्रेस में रुतबा कम था वो सशक्त नेता कमलनाथ के भी बेहद करीबी थे और राजनैतिक पृष्ठभूमि भी कांग्रेसी थी उनकी कांग्रेस के टिकिट पर 2013 में विजयराघवगढ़ से जीत भी सुनिश्चित थी लेकिन अचानक माईनिंग को लेकर उन पर गंभीर आरोप लगे जांच शुरू हुयी और फिर वो एक दिन सी एम् की मौजूदगी में बी जे पी में आ गए जबकि उन्होंने कांग्रेस ना छोड़ने के लिए मीडिया के सामने एक बहुत बड़ी कसम भी खायी थी
केस 3-तोते की गर्दन पकड़ने का सबसे बड़ा खेल हुआ "व्यापम" में ...व्यापम में एक दफ़ा तो ऐसा लगा की जैसे सी एम् शिवराज को इस्तीफा ही देना पडेगा लेकिन तभी संघ के कुछ बड़े लोगो का नाम इसमे आ गया फिर उमा भारती और जयंत मलैय्या जैसे नाम भी आये जो उस समय सी एम् पद के दावेदार माने जाते थे और फिर व्यापम में हंगामा मचता रहा लेकिन सी एम् शिवराज का पद सुरक्षित रहा...
     लेकिन कहते है ना जैसी करनी वैसी भरनी ,बाद में व्यापम की सी बी आई जांच शुरू हो गयी और उसके बाद एक और बड़ा परिवर्तन देखने को मिला कभी देखा जाता था की एम् पी में पोस्टरों से पी एम् मोदी बिलकुल गायब होते थे  सी बी आई जांच के बाद उनके पोस्टर भी दिखने लगे और सी एम् के मुँह से उनकी तारीफ़ भी खूब निकल रही है...अब ये सब तारीफ दिल से है या मजबूरी में आप सब समझ ही सकते है

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